UPTET- टीईटी पर हाई कोर्ट सख्त
इलाहाबाद [जाब्यू]। हाई कोर्ट ने प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों एवं जूनियर हाईस्कूलों के अध्यापकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता की अधिसूचना जारी करने में विलंब पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार बच्चों की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है।
कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा अपना स्टैण्ड बदलने व अधिसूचना जारी करने में देरी पर मुख्य सचिव से स्पष्टीकरण के साथ व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। साथ ही पूछा है कि सरकार कार्यरत अध्यापकों पर टीईटी अनिवार्यता की अधिसूचना जारी करने में क्यों देरी कर रही है और क्या नियमावली में संशोधन किया जाना जरूरी है।
सरकार ने पहले कहा कि अधिसूचना जारी करने जा रहे हैं, नियम में संशोधन नहीं होगा और बाद में नियमावली में संशोधन के लिए समय मांगा। याचिका की सुनवाई सात दिसंबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण टंडन ने इन्द्रासन सिंह की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2009 में नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानून पारित किया। इसके तहत राज्य सरकार ने 2011 में उप्र नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा नियमावली भी बना ली है। इस नियमावली व कानून के तहत प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों व जूनियर हाई स्कूल के अध्यापकों की नियुक्ति की पात्रता टीईटी है।
कोर्ट में मौजूद प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा ने कोर्ट के प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर नहीं दिया कि आखिर किन कारणों से अधिसूचना में विलंब हो रहा है। याचिका में कहा गया है कि इसके चलते बच्चों के शिक्षा पाने के अधिकार की पूर्ति नहीं हो पा रही है।
गौरतलब है कि परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों के 72,825 रिक्त पदों पर बीएड डिग्रीधारकों को पहले प्रशिक्षु शिक्षक नियुक्त करने के लिए उप्र बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली 1981 में संशोधन के प्रस्ताव पर भी कैबिनेट के विचाराधीन है और इस प्रस्ताव मंगलवार कैबिनेट की बैठक में मुहर लग सकती है। प्रस्ताव के मुताबिक छह महीने का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने पर प्रशिक्षु शिक्षकों को स्थायी शिक्षक की नियुक्ति दी जाएगी।
Source- Jagran
04-12-12
इलाहाबाद [जाब्यू]। हाई कोर्ट ने प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों एवं जूनियर हाईस्कूलों के अध्यापकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता की अधिसूचना जारी करने में विलंब पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार बच्चों की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है।
कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा अपना स्टैण्ड बदलने व अधिसूचना जारी करने में देरी पर मुख्य सचिव से स्पष्टीकरण के साथ व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। साथ ही पूछा है कि सरकार कार्यरत अध्यापकों पर टीईटी अनिवार्यता की अधिसूचना जारी करने में क्यों देरी कर रही है और क्या नियमावली में संशोधन किया जाना जरूरी है।
सरकार ने पहले कहा कि अधिसूचना जारी करने जा रहे हैं, नियम में संशोधन नहीं होगा और बाद में नियमावली में संशोधन के लिए समय मांगा। याचिका की सुनवाई सात दिसंबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण टंडन ने इन्द्रासन सिंह की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2009 में नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानून पारित किया। इसके तहत राज्य सरकार ने 2011 में उप्र नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा नियमावली भी बना ली है। इस नियमावली व कानून के तहत प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों व जूनियर हाई स्कूल के अध्यापकों की नियुक्ति की पात्रता टीईटी है।
कोर्ट में मौजूद प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा ने कोर्ट के प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर नहीं दिया कि आखिर किन कारणों से अधिसूचना में विलंब हो रहा है। याचिका में कहा गया है कि इसके चलते बच्चों के शिक्षा पाने के अधिकार की पूर्ति नहीं हो पा रही है।
गौरतलब है कि परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों के 72,825 रिक्त पदों पर बीएड डिग्रीधारकों को पहले प्रशिक्षु शिक्षक नियुक्त करने के लिए उप्र बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली 1981 में संशोधन के प्रस्ताव पर भी कैबिनेट के विचाराधीन है और इस प्रस्ताव मंगलवार कैबिनेट की बैठक में मुहर लग सकती है। प्रस्ताव के मुताबिक छह महीने का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने पर प्रशिक्षु शिक्षकों को स्थायी शिक्षक की नियुक्ति दी जाएगी।
Source- Jagran
04-12-12
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