हिन्दू वर्ण (जाति) व्यवस्था
वर्ण व्यवस्था हिन्दू धर्म
में प्राचीन काल से चले आ रहे सामाजिक गठन का अंग है, जिसमें विभिन्न
समुदायों के लोगों का काम निर्धारित होता था । इन लोगों की संतानों के
कार्य भी इन्हीं पर निर्भर करते थे तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों के
अनुसार बने ऐसे समुदायों को
जाति या
वर्ण
कहा जाता था । प्राचीन भारतीय समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र
वर्णों में विभाजित था । ब्राह्मणों का कार्य शास्त्र अध्ययन, वेदपाठ तथा
यज्ञ कराना होता था जबकि क्षत्रिय युद्ध तथा राज्य के कार्यों के उत्तरदायी
थे । वैश्यों का काम व्यापार तथा शूद्रों का काम सेवा प्रदान करना होता था
। प्राचीन काल में यह सब संतुलित था तथा सामाजिक संगठन की दक्षता बढ़ानो
के काम आता था। पर कालान्तर में ऊँच-नीच के भेदभाव तथा आर्थिक स्थिति बदलने
के कारण इससे विभिन्न वर्णों के बीच दूरिया बढ़ीं । आज आरक्षण के कारण
विभिन्न वर्णों के बीच अलग सा रिश्ता बनता जा रहा है । कहा जाता है कि
हिटलर
भारतीय वर्ण व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ था । भारतीय उपमहाद्वीप के कई
अन्य धर्म तथा सम्प्रदाय भी इसका पालन आंशिक या पूर्ण रूप से करते हैं ।
इनमें
सिक्ख,
इस्लाम तथा
इसाई धर्म का नाम उल्लेखनीय है ।
==चार वर्ण == वास्तव में चार वर्ण मनुष्य जाति का मूलभूत स्वभाव है,
ज्योतिष में भी इसके लक्षण मिलते हैं और श्री मदभगवत गीता में भी। वे इस
प्रकार है- १-युद्धलोलुप- लड्ने को अक्सर अमादा- क्षत्रिय २-ग्यानलोलुप-
विद्याएं सीखने को इच्छुक- किताबी कीडा-ब्राम्हण ३-धनलोलुप- अत्यंत लोभी,
ठग,- हमेशा ९९ को १०० करने के चक्कर में- बनिया या वैश्य ४-बेपरवाह,
मस्तमौला जीव- कल की फिक्र नहीं,मेहनत करो और खाओपियो मौजकरो-शूद्र।
दुर्भाग्य से इन स्वभावों को कुटिल लोगों ने जाति में बदल कर अपने को
श्रेष्ठ घोषित कर दिया, यानि ब्राम्हण, और लोगों को धर्म, भगवान के नाम पर
ठग ठग कर उनकी कमाई पर ऍश करने लगे।यहीं से धर्म में विकृति आने लगी,
क्योंकि धर्म शास्त्र की मनमानि व्याख्या अपने स्वार्थ सिद्धी के लिये
इन्होनें की। ब्रम्हभोज को ब्राम्हणभोज में बदल दिया।
क्षत्रिय
क्षत्रियोँ का काम राज्य के शासन तथा सुरक्षा का था । क्षत्रिय युद्ध
में लड़ते थे ।क्षत्रिय लोग बल,बुद्दि और विद्या तीनोँ मेँ पराँगत होते
हैँ। भारत की मुख्य क्षत्रिय जातियां है:
मराठा .
राजपूत,
सैनी,
जाट ,
डोगरा ,
गोरखा ,
मीणा ,
पाटील आदि।
ब्राह्मण
शिक्षा देना, यज्ञ करना-कराना, वेद पाठ, मन्त्रोच्चारण, क्रियाकर्म तथा विविध
संस्कार
कराना जैसे कार्य ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित किये जाते थे। मन्दिरों की
देखभाल तथा देवताओं की उपासना करने तथा करवाने का दायित्व भी उन्हीं के पास
है । मंदिरों में वेदों के ज्ञान के अतिरिक्त नृत्य तथा संतीत का भी
प्रचलन था । भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न उपनामों से जाने जाते हैं ।
द्विवेदी, दूबे, त्रिवेदी, चतुर्वेदी, पाण्डेय, शर्मा तथा झा जैसे नाम
क्षेत्र के अनुसार बदलते हैं ।
वैश्य
वे वर्ग जिसे व्यापार का काम सौपा गया था वो इस जाति मेँ आते हैँ ।उनके
नाम के आगे अग्रवाल,गुप्ता,जैसवाल, खंडेलवाल,poddarआदि लगा होता है।
शूद्र
ये विभिन्न कार्यों को करने के लिए जिम्मेवार थे जैसे कृषि,
पशुपालन(यादव), ,मालि,लौहकार,बढई(लकड़ी का काम),डोम(नाले कि सफाई करने
वाले),nai,dhobhi,teli,kahar,dhimar,khatik इत्यादि ।
उत्पत्ति
वर्णों कि उत्पत्ति के दो मान्य सिद्धन्त हैं।
धार्मिक उत्पत्ति
धर्म के अनुसार श्रिष्टी के बनने के समय मानवों को उत्पत्त करते समय
ब्रह्मा जी के विभिन्न अंगों से उत्पन्न होने के कारण कई वर्ण बन गये।
खंडन
उपरोक्त कल्पित विचार का खंडन भगवान बुद्ध ने अपने जीवन काल में हे कर
दिया था | दिघ निकाय के आगण सुत्त के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब
जीवो को क्रमिक विकास हुआ और उनमे तृष्णा लोभी अभिमान जेसे भावो का जन्म
हुआ तो उन प्रारंभिक सत्वो में विभिन्न प्रकार की विकृतिया और आयु में
क्रमश: कमी होने लगी | इसके बाद वे लोग चोरी जेसे कर्मो में प्रवृत्त होने
लगे और पकडे जाने पर क्षमा याचना पर छोड़ दिए जाने लगे किन्तु लगातार चोर
कर्म करने के कारण सभी जन समुदाय परेशां होकर एक सम्म्नानीय व्यक्ति के पास
गए और बोले तुम यहाँ अनुशासन की स्थापना करो उचित और अनुचित का निर्णय करो
हम तुम्हे अपने अन्न में से हिस्सा देंगे उस व्यक्ति ने यह मान लिया |
चूँकि वह सर्व जन द्वारा सम्मत था इसलिए महा सम्मत नाम से प्रसिंद्ध , लोगो
के क्षेत्रो (खेतों) का रक्षक था इसलिए क्षत्रिय हुआ और जनता का रंजन करने
के कारण राजा कहलाया | उन सर्व प्रथम व्यक्ति को आज मनु कहा जाता हे जिसके
आचार विचार पर चलने वाले मनुष्य कहलाये | इस प्रकार क्षत्रिय वर्ण की
उत्पत्ति प्रजतात्त्रिक तरीके से जनता द्वारा रजा चुनने के कारण हुई | यह
वर्ण का निर्णय धर्म (निति) के आधार पर हुआ न की किसी देविय सत्ताके कारण |
इसी प्रकार ब्राहमण वेश्य और शुद्र वर्ग की उत्पत्तिभी अपने उस समय के
कर्मो के अनुसार हुई
इतिहासकारों के अनुसार उत्पत्ति
भारतवर्ष में प्राचीन हिंदू वर्ण व्यचस्था में लोगों को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य के अनुसार अलग-अलग वर्गों में रखा गया था।
- पूजा-पाठ व अध्ययन-अध्यापन आदि कार्यो को करने वाले ब्राह्मण
- शासन-व्यवस्था तथा युद्ध कार्यों में संलग्न वर्ग क्षत्रिय
- व्यापार आदि कार्यों को करने वाले वैश्य
- श्रमकार्य व अन्य वर्गों के लिए सेवा करने वाले 'शूद्र कहे जाते थे। यह ध्यान रखने योग्य है कि वैदिक काल की प्राचीन व्यवस्था में जाति वंशानुगत नहीं होता था लेकिन गुप्तकाल
के आते-आते आनुवंसिक आधार पर लोगों के वर्ण तय होने लगे। परस्पर श्रेष्ठता
के भाव के चलते नई-नई जातियों की रचना होने लगी। यहाँ तक कि श्रेष्ठ समझे
जाने वाले ब्राह्मणों ने भी अपने अंदर दर्जनों वर्गीकरण कर डाला। अन्य वर्ण
के लोगों ने इसका अनुसरण किया और जातियों की संख्या हजारों में पहुँच गयी।
वैदिक काल में वर्ण-व्यवस्था जन्म-आधारित न होकर कर्म आधारित थी|
आरक्षण और वर्तमान स्थिति
उन्नीसवीं तथा बीसवी सदी में भी
जाति व्यवस्था कायम है नीच जाति वालोँ को आरक्षण के नाम पर उनकी नीचता उन्हे याद दिलाई जा रही है।
आरक्षण जहाँ पिछड़ी जातियोँ को अवसर दे रहा है वही वे उन्हे ये अहसास भी याद करवाता है कि वे उपेक्षित हैँ।
महात्मा गांधी,
भीमराव अंबेदकर
जैसे लोगों ने भारतीय वर्ण व्यवस्था की कुरीतियों को समाप्त करने की कोशिश
की । कई लोगों ने जाति प्रथा को समाप्त करने की बात की । पिछली कई सदियों
से "उच्च जाति" कहे जाने वाले लोगों की श्रेष्ठता का आधार उनके कर्म का
मानक होने लगा । ब्राह्मण बिना कुछ किये भी लोगों से उपर नहीं समझे जान लगे
।
भारतीय संविधान में जाति के आधार पर अवसर में भेदभाव करने पर रोक लगा दी
गई । पिछली कई सदियों से पिछड़ी रही कई जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण
की व्यवस्था की गई । यह कहा गया कि १० सालों में धीरे धीरे आरक्षण हटा
लिया जाएगा, पर राजनैतिक तथा कार्यपालिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया ।
धारे धीरे पिछड़े वर्गों की स्थिति में तो सुधार आया पर तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों को लगने लगा कि दलितों के
आरक्षण के कारण उनके अवसर कम हो रहे हैं । इस समय तक
जातिवाद भारतीय राजनीति तथा सामाजिक जीवन से जुड़ गया । अब भी कई
राजनैतिक दल तथा नेता
जातिवाद
के कारण चुनाव जीतते हैं । आज आरक्षण को बढ़ाने की कवायद तथा उसका विरोध
जारी है । जाति स्ब एक् ह्वे कोइ हीन् नही ह्वे सब मनुष ह्वे।
क्षेत्रीय विविधता
दलितों को लेकर विभिन्न लोगों में मतभेद हैं । कुछ जातियां किसी एक
राज्य मे पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आती हैं तो दूसरे में नहीं इसके कारण
आरक्षण जैसे विषयों पर बहुत अन्यमनस्कता की स्थिति बनी हुई है। कई लोग
दलितों की परिभाषा को जाति के आधार पर न बनाकर आर्थिक स्थिति के आधार पर
बनाने के पक्ष में हैं ।