लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा कराई गई बीएड संयुक्त प्रवेश परीक्षा-2010
में मनमाने ढंग से बांटी गई मानदेय की रेवड़ी जिम्मेदारों पर भारी पड़
सकती है। कर्मचारियों की अनियमितता एवं बंदरबांट की शिकायतों को शासन ने
गंभीरता से लेते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएड खर्च की पाई-पाई का हिसाब
मांगा है। अभी तक लविवि प्रशासन इस जानकारी को छुपाने में लगा हुआ था।
बीएड की संयुक्त प्रवेश परीक्षा-2010 कराने की जिम्मेदारी लखनऊ विश्वविद्यालय को मिली थी। इस दौरान छात्रों से बीएड प्रवेश परीक्षा की फीस के नाम पर 50 करोड़ से अधिक धनराशि लविवि के खाते में आई थी। प्रवेश परीक्षा अव्यवस्था एवं अनियमितता की शिकार हो गई थी। पहले बीएड का पर्चा लीक होने से परीक्षा टालनी पड़ी। बाद में जब दुबारा परीक्षा हुई तो अर्हता विवाद में 1.40 लाख से अधिक अभ्यर्थी ठगे गए। इनसे फीस के नाम पर ली 11 करोड़ से अधिक की धनराशि भी लविवि प्रशासन ने दबा ली। खेल यहीं नहीं रुका और काउंसलिंग के दौरान जिम्मेदारों की गलती के चलते सीट कन्फर्मेशन के नाम पर 4000 से अधिक मेधावियों का भविष्य दांव पर लग गया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद किसी तरह फैसला छात्रों के हक में आ सका। लविवि प्रशासन पर जो सबसे बड़ा आरोप लगा वह है मानेदय के नाम पर मनमानी भुगतान का। कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के खाते में मानदेय के नाम पर लाखों रुपये गए। हालांकि किसको कितना मानदेय मिला और उसका आधार क्या था इस पर लविवि लगातार पर्दा डाले रहा। कर्मचारी परिषद का आरोप है कि मानदेय भुगतान में खेल का आलम यह है कि जो अधिकारी बीएड आयोजन के समय विश्वविद्यालय में थे ही नहीं उन्होंने भी बाद में आकर मानदेय की मलाई काटी। सूचना के अधिकार के साथ ही कर्मचारी संघ एवं अन्य फोरम द्वारा बार-बार बीएड मानदेय भुगतान का विवरण मांगे जाने के बाद भी उनको निराशा हाथ लगी और लविवि ने जानकारी नहीं दी। कर्मचारी संघ द्वारा इसको आंदोलन का मुद्दा बनाए जाने के बाद शासन ने लविवि से विस्तृृत ब्योरा तलब किया है। उच्च शिक्षा सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएड में हुए खर्च एवं मदों की विस्तृत जानकारी मांगी गई है।
Source- Amar Ujala
22-2-2012
बीएड की संयुक्त प्रवेश परीक्षा-2010 कराने की जिम्मेदारी लखनऊ विश्वविद्यालय को मिली थी। इस दौरान छात्रों से बीएड प्रवेश परीक्षा की फीस के नाम पर 50 करोड़ से अधिक धनराशि लविवि के खाते में आई थी। प्रवेश परीक्षा अव्यवस्था एवं अनियमितता की शिकार हो गई थी। पहले बीएड का पर्चा लीक होने से परीक्षा टालनी पड़ी। बाद में जब दुबारा परीक्षा हुई तो अर्हता विवाद में 1.40 लाख से अधिक अभ्यर्थी ठगे गए। इनसे फीस के नाम पर ली 11 करोड़ से अधिक की धनराशि भी लविवि प्रशासन ने दबा ली। खेल यहीं नहीं रुका और काउंसलिंग के दौरान जिम्मेदारों की गलती के चलते सीट कन्फर्मेशन के नाम पर 4000 से अधिक मेधावियों का भविष्य दांव पर लग गया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद किसी तरह फैसला छात्रों के हक में आ सका। लविवि प्रशासन पर जो सबसे बड़ा आरोप लगा वह है मानेदय के नाम पर मनमानी भुगतान का। कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के खाते में मानदेय के नाम पर लाखों रुपये गए। हालांकि किसको कितना मानदेय मिला और उसका आधार क्या था इस पर लविवि लगातार पर्दा डाले रहा। कर्मचारी परिषद का आरोप है कि मानदेय भुगतान में खेल का आलम यह है कि जो अधिकारी बीएड आयोजन के समय विश्वविद्यालय में थे ही नहीं उन्होंने भी बाद में आकर मानदेय की मलाई काटी। सूचना के अधिकार के साथ ही कर्मचारी संघ एवं अन्य फोरम द्वारा बार-बार बीएड मानदेय भुगतान का विवरण मांगे जाने के बाद भी उनको निराशा हाथ लगी और लविवि ने जानकारी नहीं दी। कर्मचारी संघ द्वारा इसको आंदोलन का मुद्दा बनाए जाने के बाद शासन ने लविवि से विस्तृृत ब्योरा तलब किया है। उच्च शिक्षा सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएड में हुए खर्च एवं मदों की विस्तृत जानकारी मांगी गई है।
Source- Amar Ujala
22-2-2012
1 comment:
good jobherry
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