BREAKING NEWS

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शिक्षक भर्ती की तैयारी शुरू ***चुनावी गणित में भावी शिक्षकों पर भी डोरे *** :----

Wednesday 21 March 2012

परीक्षा बनी सरकार के गले की हड्डी

राजीव दीक्षित लखनऊ, 20 मार्च : मायावती सरकार के कार्यकाल में आयोजित अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) और उसके जरिए प्राथमिक स्कूलों में 72,825 शिक्षकों की नियुक्ति समाजवादी पार्टी की सरकार के लिए गले की हड्डी बन गई है। टीईटी को लेकर प्रदेश भर में हो रहे धरना प्रदर्शन के मद्देनजर मुख्यमंत्री कार्यालय ने माध्यमिक शिक्षा विभाग से रिपोर्ट तलब की है। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने मंगलवार शाम मुख्यमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट भेज दी है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत कक्षा एक से आठ तक में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रदेश में पहली बार टीईटी का आयोजन यूपी बोर्ड ने किया था। बीती 13 नवंबर को आयोजित टीईटी का परिणाम 25 नवंबर को घोषित किया गया था। बाद में परीक्षा परिणाम को संशोधित करने की आड़ में इसमें धांधली की गई। यह धांधली उजागर होने पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। परीक्षा में भ्रष्टाचार उजागर होने पर इसमें असफल रहने वाले अभ्यर्थी जहां टीईटी को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं टीईटी उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थी इसे रद करने के खिलाफ हैं। टीईटी को लेकर सिर्फ यही पशोपेश नहीं है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने 23 अगस्त 2010 को अधिसूचना जारी करते हुए प्राथमिक कक्षाओं में बीएड डिग्रीधारकों को पहली जनवरी 2012 तक शिक्षक नियुक्त करने की छूट दी थी। यह समयसीमा बीतने के बाद भी प्रदेश में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पायी है। दिसंबर के आखिरी हफ्ते में राज्य सरकार ने केंद्र के मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर बीएड डिग्रीधारकों को शिक्षक नियुक्त करने की समयसीमा 30 जून 2012 तक बढ़ाने का अनुरोध किया था। राज्य सरकार के इस अनुरोध पर केंद्र सरकार ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। दूसरा पेच यह है कि एनसीटीई ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए टीईटी को अर्हता परीक्षा माना था, लेकिन मायावती सरकार के कार्यकाल में कैबिनेट ने उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक सेवा) नियमावली में संशोधन कर टीईटी की मेरिट को ही शिक्षक भर्ती का एकमात्र आधार बना दिया। मामला पेचीदा इसलिए भी हो गया है क्योंकि राज्य सरकार के इस फैसले को जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में चुनौती दी जा चुकी है। वहीं टीईटी के परिणाम में उजागर हुई धांधली के मद्देनजर परीक्षा को रद करने की मांग की गई है। टीईटी को लेकर दूसरी याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पहले ही दायर है। इस याचिका में कहा गया है कि जब सहायक अध्यापकों का नियुक्ति प्राधिकारी बेसिक शिक्षा अधिकारी होता है तो शिक्षकों की नियुक्ति के संदर्भ में नियमों के विपरीत सचिव बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से विज्ञप्ति कैसे प्रकाशित कर दी गई। इस दलील के आधार पर अदालत ने शिक्षकों के चयन और नियुक्ति को स्थगित कर दिया है। राज्य सरकार के लिए एक और असमंजस यह भी है कि यदि वह टीईटी को निरस्त करती है तो अभ्यर्थी इस निर्णय के विरोध में अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

Source : Jagran 20/3/12

No comments: