स्वदेश कुमार, लखनऊ
सूबे में बेरोजगारी भत्ता हासिल करने वालों को काम भी करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि बेरोजगारी भत्ता की चाह रखने वाले अपात्रों की छंटनी की जा सके। योजना को फिलहाल मुख्यमंत्री के स्तर से अनुमति मिलनी बाकी है लेकिन पूरा खाका तय कर लिया गया है। योजना है कि बेरोजगारों से वही काम लिया जाए जो उनकी काबलियत के अनुरूप हो और उतना ही काम लिया जाये जिससे साल भर के भत्ते की भरपाई की जा सके।
बेरोजगारी भत्ते को लेकर सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या अपात्रों को रोकने की है। अपात्र का आशय ऐसे लोगों से है जो कहीं छोटी-मोटी निजी स्तर की नौकरियां कर रहे हैं लेकिन बेरोजगारी भत्ते के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है। जो व्यवस्था की जा रही है, उसे इस तरह से समझा जा सकता है। मान लीजिए, भत्ता लेने वाला बेरोजगार कम्प्यूटर का जानकार है। वह एक हजार रुपये प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ते के हिसाब से साल में 12,000 पाता है। वहीं, दूसरी ओर कम्प्यूटर आपरेटर की तनख्वाह सरकारी तौर पर छह हजार रुपये प्रतिमाह हो तो जिलाधिकारी को अधिकार होगा कि वह बेरोजगार से किसी विभाग में दो माह के लिए कम्प्यूटर आपरेटर का काम ले सके। विभाग का मानना है कि भत्ते के एवज यदि काम की शर्त होगी तो ऐसे लोग अपने आप दावेदारी से हट जाएंगे जो पहले से ही कहीं नौकरी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपना नियमित काम छोड़ना होगा।
परिवार की आर्थिक स्थिति भी होगी तय : भत्ते के लिए तय की जा रही नियमावली में इसका प्रावधान किया जा रहा है कि केवल उन्हीं बेरोजगारों को ही भत्ता दिया जायेगा, जिनके परिवारों की वार्षिक आय शहरों में 26000 रुपये से कम और गांवों में 20000 रुपये से कम होगी। परिवार में अगर एक से अधिक बेरोजगार होंगे तो उन सभी को भत्ता मिलेगा। भत्ता उन्हीं बेरोजगारों को दिया जायेगा जो सेवायोजन कार्यालय में पंजीकृत होंगे।
Source- Jagran
30-3-2012
सूबे में बेरोजगारी भत्ता हासिल करने वालों को काम भी करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि बेरोजगारी भत्ता की चाह रखने वाले अपात्रों की छंटनी की जा सके। योजना को फिलहाल मुख्यमंत्री के स्तर से अनुमति मिलनी बाकी है लेकिन पूरा खाका तय कर लिया गया है। योजना है कि बेरोजगारों से वही काम लिया जाए जो उनकी काबलियत के अनुरूप हो और उतना ही काम लिया जाये जिससे साल भर के भत्ते की भरपाई की जा सके।
बेरोजगारी भत्ते को लेकर सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या अपात्रों को रोकने की है। अपात्र का आशय ऐसे लोगों से है जो कहीं छोटी-मोटी निजी स्तर की नौकरियां कर रहे हैं लेकिन बेरोजगारी भत्ते के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है। जो व्यवस्था की जा रही है, उसे इस तरह से समझा जा सकता है। मान लीजिए, भत्ता लेने वाला बेरोजगार कम्प्यूटर का जानकार है। वह एक हजार रुपये प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ते के हिसाब से साल में 12,000 पाता है। वहीं, दूसरी ओर कम्प्यूटर आपरेटर की तनख्वाह सरकारी तौर पर छह हजार रुपये प्रतिमाह हो तो जिलाधिकारी को अधिकार होगा कि वह बेरोजगार से किसी विभाग में दो माह के लिए कम्प्यूटर आपरेटर का काम ले सके। विभाग का मानना है कि भत्ते के एवज यदि काम की शर्त होगी तो ऐसे लोग अपने आप दावेदारी से हट जाएंगे जो पहले से ही कहीं नौकरी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपना नियमित काम छोड़ना होगा।
परिवार की आर्थिक स्थिति भी होगी तय : भत्ते के लिए तय की जा रही नियमावली में इसका प्रावधान किया जा रहा है कि केवल उन्हीं बेरोजगारों को ही भत्ता दिया जायेगा, जिनके परिवारों की वार्षिक आय शहरों में 26000 रुपये से कम और गांवों में 20000 रुपये से कम होगी। परिवार में अगर एक से अधिक बेरोजगार होंगे तो उन सभी को भत्ता मिलेगा। भत्ता उन्हीं बेरोजगारों को दिया जायेगा जो सेवायोजन कार्यालय में पंजीकृत होंगे।
Source- Jagran
30-3-2012
No comments:
Post a Comment