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Thursday, 1 March 2012

तो शिक्षक बनने से वंचित रह जाएंगे कई शोधार्थी

इलाहाबाद : विश्वविद्यालय में ऐसे शिक्षकों की एक परंपरा रही है जिन्होंने यहीं से शिक्षा प्राप्त करने के बाद यहीं पर पढ़ाना शुरू कर दिया। विश्वविद्यालय में इस बार लगभग चार सौ पदों के लिए जो प्रक्रिया शुरू हुई है, वह कई शोधार्थी छात्रों के लिए कष्टप्रद साबित होगी। उनका विवि शिक्षक बनने का सपना पूरा होता नहीं दिखाई देता।
उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने वर्ष 2009 से प्रीडीफिल कोर्स करना आवश्यक बना दिया था। इलाहाबाद विवि के विज्ञान और वाणिज्य संकाय में ऐसे कोर्स चले ही नहीं। कला संकाय में भूगोल, उर्दू, इतिहास, अर्थशास्त्र आदि में ऐसे कोर्स चले जरूर लेकिन बताया जाता है कि वह यूजीसी के मानकों के अनुरूप नहीं थे। जिसकी वजह से कई छात्रों को प्रमाणपत्र नहीं मिल पाए हैं। यूजीसी ने कहा था कि प्री डीफिल में साहित्य सर्वेक्षण और तकनीकी के पेपर होंगे जिसमें प्रेजेंटेशन ही आधार होगा। एक पेपर वैकल्पिक होगा जिसकी परीक्षा देनी होगी। ज्यादातर विभागों ने यूजीसी मानकों का पूरी तरह पालन नहीं किया जिसकी वजह से कई जगहों पर प्रमाणपत्र छात्रों को नहीं मिल पाए हैं। इसका कारण बताया जा रहा है कि चूंकि यह नियमानुसार नहीं थे इसलिए कुलपति ने इन्हें हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। विवि में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के लिए प्रवेश की अंतिम तिथि 12 मार्च है। ऐसे में तमाम छात्र हैं जो पीएचडी में तीन साल से भी ज्यादा समय से इनरोल्ड हैं लेकिन थिसिस नहीं जमा कर सकते क्यों कि प्रीडीफिल प्रमाणपत्र नहीं है। कुछ विभागों ने यूजीसी नियमों के बजाए अपने नियम के आधार पर थीसिस जमा तो करा ली है लेकिन हो सकता है कि उनके शिक्षक भर्ती के लिए फार्म बाद में अस्वीकृत कर दिए जाएं। ऐसी स्थिति में छात्रों का शिक्षक बनने का सपना अधूरा रह जाएगा। इस संबंध में इंडियन रिसर्च स्कालर एसोसिएशन के प्रमोद पांडेय, उमेश चंद्र, आरिफा, अवधेश, रविशंकर, राजीव, नफीस, शिवेंद्र सिंह और अन्य शोधार्थियों ने मांग की कि जिन विभागों में डीफिल कोर्स चलाया गया है, उनके प्रमाणपत्र वितरित किए जाएं और जहां नहीं चलाया गया है वहां इसे जल्द से शुरू किया जाए।
Source- Jagran

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